वतन की मोहब्बत, ईमान का हिस्सा: अजमेर शरीफ अहाते नूर बारगाह गरीब नवाज़ से हिंदुस्तान की फतेहयाबी के लिए दुआ
अजमेर शरीफ की बारगाह ख्वाजा गरीब नवाज में आज एक खास दुआई जलसा मुनक्किद किया गया। दरगाह के अहाते नूर में हुए इस जलसे में मुल्क-ओ-कौम की सलामती, सरहदों की हिफाजत और हिंदुस्तान की फतेहयाबी के लिए दुआएं की गईं।
खुद्दाम-ए-ख्वाजा और शहर के तमाम तबकों से आए लोगों ने अपने मुल्क की कामयाबी और अमन-ओ-शांति के लिए हाथ उठाकर अल्लाह से फरियाद की। इस मौके पर "हुब्ब-उल-वतन मिनल-ईमान" (वतन से मोहब्बत ईमान का हिस्सा है) का पैगाम बार-बार दोहराया गया।
खादिमों ने सरहदों पर तैनात जांबाज फौजियों की कुर्बानी और बहादुरी को याद करते हुए कहा —
"जो अपने घर-परिवार से दूर, मुल्क की हिफाजत में खड़े हैं, अल्लाह उनकी हिफाजत फरमाए, उनके हौसले बुलंद रखे और उन्हें फतेह अता करे। हमें नाज है ऐसे जवानों पर जो अपनी जान हथेली पर रखकर मुल्क की सरहदों की रखवाली कर रहे हैं।"
इस मौके पर दरगाह शरीफ के खादिमों ने यह भी याद दिलाया कि करगिल जंग (1999) के दौरान अजमेर के मुसलमानों और खुद्दाम-ए-ख्वाजा की जानिब से घायल सैनिकों के लिए खून दान किया गया था और प्रधानमंत्री राहत कोष में भी सहयोग दिया गया था।
"अगर आज भी वतन पुकारेगा, तो अजमेर की सरज़मीन का हर बाशिंदा सीना तानकर खड़ा मिलेगा।" — यह बात जलसे में कही गई।
दुआ के दौरान "नसरुम मिनल्लाहि वा फतहुन करीब" (अल्लाह की मदद और जीत करीब है) की सदाएं गूंजीं। जलसे का समापन मुल्क में अमन-ओ-सुकून, भाईचारा और तरक्की की दुआओं के साथ किया गया।
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रिपोर्ट – [News daily hindi]
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सम्पादक: मोहम्मद रज़ा
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