माहे रमज़ान: बरकतों, रहमतों और मग़फ़िरत का महीना | नेकी कमाने का बेहतरीन मौका | रोज़ेदार के लिए जन्नत के दरवाज़े खुले
माहे रमज़ानुल मुबारक की आमद पर न केवल भारत बल्कि पूरे आलमे इस्लाम और दुनिया भर के मुसलमानों में मज़हबी जागरूकता की लहर देखी जा रही है। रमज़ानुल मुबारक में हर नेक अमल का सवाब सत्तर गुना बढ़ जाता है, यानी रमज़ान में नेकी कमाने के लिए बेहतरीन मौका मिलता है। इस पवित्र महीने में जहां मर्द रोज़ा रखकर और दूसरी इबादतों के ज़रिए अपनी नेकियों में इज़ाफा करते हैं, वहीं महिलाएं और बच्चे भी किसी से पीछे नहीं रहते, बल्कि कई बार आगे ही बढ़कर इबादतों में मशगूल रहते हैं।
बेशक वे मुसलमान बहुत खुशकिस्मत होते हैं जो हक़ूक़ुल्लाह (अल्लाह के अधिकार) और हक़ूक़ुल इबाद (बंदों के अधिकार) की अदायगी में रमज़ान हो या गैर-रमज़ान, किसी भी तरह की कोई कोताही नहीं करते।
एक हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि रोज़ेदार के मुंह की बू अल्लाह के नज़दीक कस्तूरी (मिस्क) की खुशबू से भी ज़्यादा पसंदीदा है। हदीस शरीफ में यह भी आता है कि वह नमाज़, जिसका वुज़ू मिस्वाक के साथ किया गया हो, उस नमाज़ से सत्तर गुना अफ़ज़ल है जिसमें मिस्वाक न की गई हो।
आइए, हम सब रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी हिस्से में अल्लाह की बारगाह में इस अंदाज में हाज़िरी दें कि पहले अपने गुनाहों पर शर्मिंदा होकर तौबा करें और अल्लाह से अर्ज़ करें कि "ऐ परवरदिगार, तू अपने महबूब के सदके हमारे तमाम गुनाहों को माफ़ फरमा और हमें रमज़ान की तमाम बरकतों और रहमतों से मालामाल कर। साथ ही, हमारे देश भारत में अमन-ओ-अमान क़ायम फरमा।"
दुआ गो
हकीम अता-उर-रहमान अजमली ए एंड एस फार्मेसी
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सम्पादक: मोहम्मद रज़ा
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