इल्म और हिकमत का ताल्लुक लिबास से नहीं, काबिलियत से होता है!" इक़बाल के अशआर और तालीम का असली मकसद
नई दिल्ली: मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल ने अपने अशआर में हिकमत, तालीम और टेक्नोलॉजी के महत्व पर जोर देते हुए यह स्पष्ट किया था कि इनका ताल्लुक किसी के पहनावे से नहीं होता। उनका मानना था कि शिक्षा और ज्ञान की राह में कोई भी लिबास बाधा नहीं बन सकता।
क्या कहा था इकबाल ने?
इकबाल कहते हैं:
"हिकमत अज़ कतअ व बरीद जामा नीसत"
"मानअ इल्म व हुनर अमामा नीसत"
अर्थात, ज्ञान और बुद्धिमत्ता का संबंध कपड़ों की बनावट से नहीं होता, और न ही अमामा (पगड़ी) पहनना या न पहनना किसी के हुनर और शिक्षा के आड़े आता है।
पहनावे की नहीं, इल्म की अहमियत
इक़बाल के इन विचारों से साफ होता है कि कोई व्यक्ति पैंट-शर्ट पहने या कुर्ता-पायजामा, अमामा बांधे या दाढ़ी रखे, हिजाब पहने या न पहने – इससे उसकी शिक्षा पर कोई असर नहीं पड़ता। असल बात यह है कि वह कितनी लगन और मेहनत से ज्ञान अर्जित करता है।
यूरोप की तरक्की और हमारी जिम्मेदारी
इकबाल इस बात पर भी जोर देते थे कि यूरोप की सफलता विज्ञान और तकनीक में महारत हासिल करने से हुई है। हमें भी साइंस और टेक्नोलॉजी की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, लेकिन अपनी तहजीब, भाषा और पहचान को कायम रखते हुए।
मदरसों और आधुनिक शिक्षा का फासला
जिस दौर में इक़बाल ने यह बातें कही थीं, उस समय मदरसों की शिक्षा केवल दीन तक सीमित थी। विज्ञान और तकनीक सीखने के लिए मुस्लिम छात्रों को अंग्रेज़ी स्कूलों में दाखिला लेना पड़ता था, जिससे उनके दीन से दूर होने का खतरा बना रहता था। यह समस्या आज भी मौजूद है, जहां बहुत से छात्र आधुनिक शिक्षा और दीनी तालीम के बीच संतुलन नहीं बना पाते।
क्या किया जाना चाहिए?
विशेषज्ञों का मानना है कि मुस्लिम समाज को आधुनिक शिक्षा को अपनाते हुए अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखना चाहिए। डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक बनने के लिए वेस्टर्न मॉडल को अपनाना ज़रूरी नहीं, बल्कि ज्ञान को अपनाना ज़रूरी है।
ज्ञान किसी एक समुदाय, लिबास या विचारधारा तक सीमित नहीं होता। जो भी इसे अपनाएगा, वही आगे बढ़ेगा। हिकमत और इल्म को अपनाने के लिए हमें अपनी जड़ों को बनाए रखते हुए, समय के साथ खुद को तैयार करना होगा।
Hakeem Ataurrehman Ajmali, MD A & S Pharmacy, Delhi)
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सम्पादक: मोहम्मद रज़ा
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